साहित्य सभा कैथल द्वारा गुलशन मदान के सम्मान में 9 दिसंबर 2012 को अलविदा गोष्ठी का आयोजन किया गया,मंच संचालन श्री कमलेश शर्मा ने किया। सभी रचनाकारों ने गुलशन मदान के साथ अपने संबंधों का उल्लेख करते हुए रचनाएँ पढीं .
प्रो अमृत लाल मदान, श्री कमलेश शर्मा, श्री अनिल छाबरा ने गुलशन की ही रचनायें सुनाते हुए उन्हें अलविदा कही तो श्री इश्वर गर्ग ने ने एक शेर पढ़ा-
याद है तुमने कहा था बेवफाई जुर्म है ,
याद है मैंने कहा था छोड़ मत जाना मुझे .
डॉ प्रदुमन भल्ला ने किसी शायर का शेर कहा-
बेवफा तो है वो लेकिन बेवफा कैसे कहूं,
जिसको अच्छा कह दिया उसको बुरा कैसे कहूं
श्री बाल किशन बेज़ार ने भी किसी का एक शेर कहा-
जहाँ भी जाएगा वहीं रौशनी लुटायेगा ,
किसी चिराग का अपना मकां नहीं होता।
श्री रविंदर रवि की ताज़ा ग़ज़ल ने सबका मन मोह लिया-
श्री रिसाल जांगडा की हरियाणवी ग़ज़ल भी सबकी प्रशंसा का पात्र बनी ..
गोष्ठी की अध्यक्षता कर रहे हरियाणा ग्रन्थ एकादमी के उप प्रधान श्री कमलेश भारतीय ने भी गुलशन के कैथल से करनाल शिफ्ट करने पर टिप्पणी करते हुए एक शेर सुनाया-
नक्शा उठा के कोई नया शहर ढूंढिए ,
इस शहर में सबसे मुलाक़ात हो चुकी।
अंत में गुलशन मदान ने अपनी रचनाएँ सुनकर सबसे अलविदा कही-
तेरी महफ़िल से जाते हैं मियाँ, अच्छा खुदा हाफ़िज़
न जाने फिर मिलेंगे अब कहाँ अच्छा खुदा हाफ़िज़
बिछड़ते वक़्त नाम आँखों से की बातें बहुत गुलशन
मगर इतना ही कह पायी जुबां अच्छा खुदा हाफ़िज़